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हमारे देश में हर साल 2000 से अधिक त्यौहार मनाए जाते हैं. इन सभी त्योहारों के पीछे कोई ना कोई वजह होती है. यह त्यौहार महज सिर्फ परंपरा या रूढ़ि बातें नहीं होती हैं. हर एक त्यौहार के पीछे ज्ञान, विज्ञान, कुदरत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी तमाम बातें छुपी होती है. हर साल 14 या 15 जनवरी को हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार मकर संक्रांति होता है. यह पौष मास में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है. वैसे तो संक्रांति साल में 12 बार राशि में आती है, लेकिन मकर और कर्क राशि में इसके प्रवेश पर विशेष महत्व है. जिसके साथ बढ़ती गति के चलते मकर में सूर्य के प्रवेश से दिन बड़ा छोटी हो जाती है, जबकि कर्क में सूर्य के प्रवेश रात बड़ी और दिन छोटा हो जाता है.
मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है (Why We Celebrate Makar Sankranti)
अलग-अलग धर्मों की विभिन्न मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति मनाने के कई कारण हैं, लेकिन मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में जाने के शुभ मौके पर मनाया जाता है. भारतीय शास्त्रों में कहा गया है कि जब सूर्य दक्षिणायन में रहता है, तब देवताओं की रात्रि होती है. अर्थात यह समय नकारात्मक का प्रतीक होता है और वहीं दूसरी तरफ जब सूर्य उत्तरायण में रहता है तो वह देवताओं का दिन होता है और यह समय को बहुत ही शुभ माना जाता है.
दरअसल, भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और मकर संक्रांति से पहले सूर्य भारत के हिसाब से दक्षिण गोलार्ध में रहता है और मकर संक्रांति के समय पर वह उत्तरी गोलार्ध में आना शुरू कर देता है जिसका मतलब होता है कि भारतीय सभ्यता के अनुसार इस दिन से उत्तरायण का समय शुरू हो जाता है. यह भी माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन से सर्दी समाप्त होना शुरू हो जाती है और दिन बड़े रात छोटे होने लगते हैं. यूँ कहे तो गर्मी की शुरुआत होने लगती है.
मकर संक्रांति की कथा (Makar Sankranti Story in Hindi)
हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक़, इस विशेष दिन पर भगवान सूर्य अपने पुत्र भगवान शनि के पास जाते हैं. उस समय भगवान शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं. पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ संबंधों को मनाने के लिए मकर संक्रांति को महत्व दिया गया है. ऐसा कहा जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते हैं तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मक खुशी और समृद्धि की शुरुआत होती है. इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी हुई है. जिन्हें यह वरदान मिला था कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी. जब भीष्म पितामह बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे तब उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद की. इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई.
मकर संक्रांति का महत्व (Importance of Makar Sankranti)
कई ऐसे त्यौहार होते हैं जिनमें कुछ ऐसे कार्य किए जाते हैं जिसकी वजह से पर्यावरण को काफ़ी नुकसान होता है लेकिन मकर संक्रांति के गिनती उन त्यौहारों में होती है जिससे कि पर्यावरण को काफ़ी कम हानि पहुंचती हैं. वही वैज्ञानिक दृष्टि से मकर संक्रांति अपना एक अलग ही महत्व रखती है.
मकर संक्रांति के दिन सर्दियां खत्म होने लगती है और भारतीय नदियों में से वाष्प प्रक्रिया शुरू हो जाती है, क्योंकि मकर संक्रांति से सूर्य भारत की तरफ पढ़ना शुरू करता है. वैज्ञानिकों के अनुसार नदियों से निकलने वाली वाष्प कई रोगों को दूर करती है. अतः मकर संक्रांति के दिन नदियों में नहाना भारतीय सभ्यता के अनुसार शुभ और वैज्ञानिकों के अनुसार शरीर के लिए लाभकारी माना जाता है.
वही खानपान की बात करें तो मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी और तिल की मिठाई खाई जाती है, जो कि वैज्ञानिक दृष्टि से शरीर के लिए बहुत लाभकारी होती है. शास्त्रों के अनुसार, सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में जाना शुभ होता है. वही विज्ञान के अनुसार यह मानव शरीर के लिए लाभकारी होती हैं क्योंकि उत्तरायण में अर्थात गर्मी के दिनों में कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होती है.
मकर संक्रांति की पूजा विधि (Makar Sankranti Puja Vidhi)
जो लोग इस विशेष दिन को मानते हैं वे अपने घरों में मकर संक्रांति की पूजा करते हैं. इस दिन के लिए पूजा विधि कुछ इस प्रकार हैं-
– सबसे पहले पूजा शुरू करने से पूर्व पुण्य काल मुहूर्त और महा पुण्य काल मुहूर्त निकाल लें और पूजा करने के स्थान को साफ और शुद्ध करें. वैसे यह पूजा भगवान सूर्य के लिए की जाती है, इसलिए आप पूजा उन्हें समर्पित करते हैं.
– इसके बाद एक थाली में चार काली और चार सफेद तिल के लड्डू रखे जाते हैं, साथ ही कुछ पैसे भी थाली में रखे जाते हैं.
– इसके बाद थाली में अगली सामग्री चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते शुद्ध जल, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है.
– भगवान के प्रसाद के लिए एक प्लेट में काले तिल और सफेद तिल के लड्डू, कुछ पैसे और मिठाई रखकर भगवान को चढ़ाया जाता है.
– यह प्रसाद भगवान सूर्य को चढ़ाने के बाद उनकी आरती की जाती है.
– पूजा के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढक कर रखती हैं.
– इसके बाद सूर्य मंत्र का कम से कम 21 से 108 बार उच्चारण किया जाता है.
2022 में मकर संक्रांति कब मनाई जाएगी (Makar Sankranti 2022 Date)
मकर संक्रांति प्रत्येक वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है. साल 2022 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी.
– पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 2:43 बजे से 5:45 बजे के बीच है जो कि कुल 3 घंटे और 2 मिनट का है.
– इसके अलावा महा पुण्य काल के शुभ मुहूर्त दोपहर 2:43 बजे से 4:28 बजे के बीच है जो कि कुल 1 घंटे पर 40 मिनट का है.
मकर संक्रांति पूजा से होने वाले लाभ (Benefits of Makar Sankranti Puja)
– इसे चेतना और ब्रह्मांडिय बुद्धि का स्तर तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
– आध्यात्मिक भावना शरीर को लाभ देती है उसे शुद्ध करती है.
– इस अवधि के दौरान किए गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते हैं.
– समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फैलाने का यह धार्मिक समय होता है.
मकर संक्रांति को मनाने का तरीका (Makar Sankranti Celebration)
इस पर्व के शुभ मुहूर्त में स्नान दान पुण्य का विशेष महत्व होता है. इस दिन लोग गुड़ व तिल लगाकर किसी पावन नदी में स्नान करते हैं. इसके बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हैं और उनकी पूजा की जाती है और उनसे अपने अच्छे भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है. इसके बाद गुड़, तिल, कंबल, फल आदि का दान भी किया जाता है. इस दिन कई जगह पर पतंग उड़ाई जाती है. साथ ही इस दिन तीली से बने व्यंजन का सेवन करते हैं. इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भी भगवान सूर्य देव को भोग लगाते हैं और खिचड़ी का दान तो विशेष रूप से किया जाता है. जिस कारण यह पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा इस दिन को अलग-अलग शहरों में अपने अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस दिन किसानों की तरह फसल भी काटी जाती है.
मकर संक्रांति त्यौहार के अलग अलग नाम (Different Names of Makar Sankranti in India)
भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर प्रदेश में बहुत हर्षोउल्लास से मनाया जाता है, लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है.
उत्तर प्रदेश- उत्तर प्रदेश और पश्चिम में बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहा जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर लोग इसे मनाते हैं. इस अवसर में प्रयाग यानी इलाहाबाद में एक बड़ा एक महीने का माघ मेला शुरू होता है. त्रिवेणी के अलावा उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़मुक्तेश्वर और बिहार में पटना जैसे कई जगहों पर भी धार्मिक स्नान होते हैं.
पश्चिम बंगाल- बंगाल में हर वर्ष एक बहुत बड़े मेले का आयोजन गंगासागर में किया जाता है. जहां माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रत को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र में डुबकी लगाई गई थी. इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं.
आंध्र प्रदेश- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मकर संक्रमामा से मानते हैं. जिसे यहां 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाया जाता है. यह आंध्र प्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा अवसर होता है. तेलुगु इसे पेंडा पांडुगा कहते हैं जिसका अर्थ होता है बड़ा उत्सव!
तमिलनाडु- तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से जाना जाता है, जो कि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है.
कश्मीर- इस त्यौहार को कश्मीर में शिशुर सेंक्रान्त नाम से जाना जाता है.
असम- इस त्यौहार को असम में माघ बिहू के नाम से जाना जाता है.
पंजाब- पंजाब में इस त्यौहार को लोहड़ी के नाम से जाना जाता है. जो सभी पंजाबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरु करते हैं और उसकी पूजा करते हैं.
हरियाणा- हरियाणा में इस त्यौहार को मगही नाम से जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश में भी इस त्यौहार को इसी नाम से जाना जाता है.
उड़ीसा- हमारे भारत में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरूआत करते हैं. सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते हैं. उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ की यात्रा शामिल है, जिसमें घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है.
केरल- केरल में लोग इस दिन बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते हैं, जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है.
गुजरात- उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में बनाया जाता है. इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है. जिसमें वहां के सभी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है. इस दौरान वहां पर 2 दिन का राष्ट्रीय अवकाश भी होता है.
महाराष्ट्र- संक्रांति के दिनों में महाराष्ट्र में तिल और गुड़ से बने व्यंजन का सेवन किया जाता है. लोग तिल के लड्डू देते हुए एक दूसरे से “टिल गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते हैं. यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है. जब विवाहित महिलाएं हल्दी कुमकुम से मेहमानों को आमंत्रित करती हैं और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देते हैं.
बुंदेलखंड- बुंदेलखंड में विशेषकर मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के त्योहार को सकरात नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.
FAQ
Q: मकर संक्रांति का त्यौहार 2022 में कब मनाया जाएगा?
Ans: 14 जनवरी को.
Q: मकर संक्रांति में किसकी पूजा की जाती है?
Ans: भगवान सूर्य की.
Q: मकर संक्रांति को और किस नाम से जाना जाता है?
Ans: भारत के अलग अलग प्रान्त में इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है.
Q: मकर संक्रांति में किस चीज़ का भोग लगता है?
Ans: तिल एवम गुड़ का.